बहुत दिनोंके बाद मैं ,पहुंचा अपने गाँव
सिसक सिसक रोने लगी ,नीम आम की छाँव
नीम आम की छाँव ,सुनाने लगी कहानी
बदल गई हर रीति ,गाँव में रहां न पानी
सूरज अपने नाम ,लिखा लेता हर बोली
खुलते जिसके ओंठ ,उसी के सर पर गोली
अपने ही अब गाँव में ,रहा नहीं सम्मान
अपने ही करने लगे,अपनों का अपमान
अपनों का अपमान ,सभी को प्यारा पैसा
जब भी आता फोन ,बोलते ऐसा बैसा
सोच रहा आनंद ,गाँव अब जाऊँ कैसे
पहले लेता जान ,बाद में गिनता पैसे
खेत मेढ़ खालिहानका ,बदल गया आकार
चकबंदी के हो गए ,सपने सब साकार
सपने सब साकार ,शेष ना ऊसर बंजर
पगडंडी गढ़बाट ,तलैया गायब पोखर
वन बागन से कूक ,न जाने कहाँ खो गयी
मौसम की हर चाल ,विनाशक बीज बो ग़ई
आँखों में तिरता सदा ,अपना प्यारा गाँव
चुल्हा चौका चबूतरा ,जलता हुआ अलाव
जलता हुआ अलाव ,जगाये सबका तन मन
बांटे सबका ताप ,भुलाए सबकी अनबन
हँस हँस अपनी बात ,सनाते रोज़ कहानी
आल्हा ऊदल फाग ,सभी को रटा जबानी
[भोपाल:२०.१०.२००६]
aaoonj
Thursday, September 30, 2010
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