Wednesday, November 3, 2010
Tuesday, November 2, 2010
दीप जलाये
साथ साथ पथ पर चलने से
विश्वासों के फूल खिलें हैं
सतत साधना के बदले में
अंतर्मन में भाव जगे हैं
साँस साँस विश्वास जगाकर
मंजिलको मुट्ठी में भर लें
प्राण प्राण में दीप जगाकर
जिजीविषा जीवन में भर लें प्रेम मिलन की रीति चलायें
सदियों से मानती आई जो
घ र घर में अब तक दीवाली
राम रहीमा के घर आँगन
बाँट नहीं पाई खुशहाली
आओ हम दोनों मिल कर के
दुनिया का अंधियारा पीलें
हरे भरे जो घाव सिसकते
पीड़ा पीलें उनको सीलें
प्राण प्राण में preeti jaagaaye
विश्वासों के फूल खिलें हैं
सतत साधना के बदले में
अंतर्मन में भाव जगे हैं
साँस साँस विश्वास जगाकर
मंजिलको मुट्ठी में भर लें
प्राण प्राण में दीप जगाकर
जिजीविषा जीवन में भर लें प्रेम मिलन की रीति चलायें
सदियों से मानती आई जो
घ र घर में अब तक दीवाली
राम रहीमा के घर आँगन
बाँट नहीं पाई खुशहाली
आओ हम दोनों मिल कर के
दुनिया का अंधियारा पीलें
हरे भरे जो घाव सिसकते
पीड़ा पीलें उनको सीलें
प्राण प्राण में preeti jaagaaye
Thursday, September 30, 2010
डॉक्टर आनंद की कुण्डलियाँ
बहुत दिनोंके बाद मैं ,पहुंचा अपने गाँव
सिसक सिसक रोने लगी ,नीम आम की छाँव
नीम आम की छाँव ,सुनाने लगी कहानी
बदल गई हर रीति ,गाँव में रहां न पानी
सूरज अपने नाम ,लिखा लेता हर बोली
खुलते जिसके ओंठ ,उसी के सर पर गोली
अपने ही अब गाँव में ,रहा नहीं सम्मान
अपने ही करने लगे,अपनों का अपमान
अपनों का अपमान ,सभी को प्यारा पैसा
जब भी आता फोन ,बोलते ऐसा बैसा
सोच रहा आनंद ,गाँव अब जाऊँ कैसे
पहले लेता जान ,बाद में गिनता पैसे
खेत मेढ़ खालिहानका ,बदल गया आकार
चकबंदी के हो गए ,सपने सब साकार
सपने सब साकार ,शेष ना ऊसर बंजर
पगडंडी गढ़बाट ,तलैया गायब पोखर
वन बागन से कूक ,न जाने कहाँ खो गयी
मौसम की हर चाल ,विनाशक बीज बो ग़ई
आँखों में तिरता सदा ,अपना प्यारा गाँव
चुल्हा चौका चबूतरा ,जलता हुआ अलाव
जलता हुआ अलाव ,जगाये सबका तन मन
बांटे सबका ताप ,भुलाए सबकी अनबन
हँस हँस अपनी बात ,सनाते रोज़ कहानी
आल्हा ऊदल फाग ,सभी को रटा जबानी
[भोपाल:२०.१०.२००६]
aaoonj
सिसक सिसक रोने लगी ,नीम आम की छाँव
नीम आम की छाँव ,सुनाने लगी कहानी
बदल गई हर रीति ,गाँव में रहां न पानी
सूरज अपने नाम ,लिखा लेता हर बोली
खुलते जिसके ओंठ ,उसी के सर पर गोली
अपने ही अब गाँव में ,रहा नहीं सम्मान
अपने ही करने लगे,अपनों का अपमान
अपनों का अपमान ,सभी को प्यारा पैसा
जब भी आता फोन ,बोलते ऐसा बैसा
सोच रहा आनंद ,गाँव अब जाऊँ कैसे
पहले लेता जान ,बाद में गिनता पैसे
खेत मेढ़ खालिहानका ,बदल गया आकार
चकबंदी के हो गए ,सपने सब साकार
सपने सब साकार ,शेष ना ऊसर बंजर
पगडंडी गढ़बाट ,तलैया गायब पोखर
वन बागन से कूक ,न जाने कहाँ खो गयी
मौसम की हर चाल ,विनाशक बीज बो ग़ई
आँखों में तिरता सदा ,अपना प्यारा गाँव
चुल्हा चौका चबूतरा ,जलता हुआ अलाव
जलता हुआ अलाव ,जगाये सबका तन मन
बांटे सबका ताप ,भुलाए सबकी अनबन
हँस हँस अपनी बात ,सनाते रोज़ कहानी
आल्हा ऊदल फाग ,सभी को रटा जबानी
[भोपाल:२०.१०.२००६]
aaoonj
Wednesday, September 22, 2010
तापमान के तीखे तेवर
जनसंख्या की बाढ़ से ,उपजें जटिल सवाल
तापमान का मचलना ,सबसे बड़ा बबाल
ग्रीन हॉउस के छेद का ,पसर रहा भूगोल
पंख न उसके यदि कटे, आयेगा भूडोल
तापमान का मचलना ,सबसे बड़ा बबाल
ग्रीन हॉउस के छेद का ,पसर रहा भूगोल
पंख न उसके यदि कटे, आयेगा भूडोल
Thursday, September 16, 2010
डॉक्टर आनंद के जनक छंद
चिंता का कारन बना
तापमान का उछलना
ताप ताव ऐसा तपा
बर्फ पिघल पानी बना
प्रकृति हो रही है खफा
घोर प्रदूषण बढ़ रहा
शुद्ध हवा पानी नहीं
जीवन घुल घुल मर रहा
पानी तल गहरा हुआ
दिखा रहे हैं झुनझुना
सर सरिता निर्झर कुआं
यह कैसा अंधेर है
गधे पजीरी खा रहे
कलियुग का यह फेर है
संसद पर हमला करे
सीना ताने रह रहा
फांसी से वो ना डरे
रूप पुजारी का धरो
जप माला छापा तिलक
हत्याएं सौ सौ करो
हुआ चलन संतान का
तोड़ रहे अनुवंध शुचि
रेशम से संवंध का
Saturday, September 4, 2010
आनंद की गज़लें
जीवन साथी सबके पेड़
हाथ मिलाते सबसे पेड़
वर्षा आंधी तूफानों का
करें सामना डटकर पेड़
छानी छप्पर महल अटारी
गा उठते बन ठन कर पेड़
मन्त्र रिचाओं की सेवा में
रहे जागते वन के पेड़
जीवन भर आनंद बांटते
आदि अंत हैं जग के पेड़
[भोपाल :१०.१२.०७]
जब भी नया उगाया पेड़
खुशहाली ले आया पेड़
मरुथल पतझड़ हुए निराश
हरियाली बन छाया पेड़
पिए रात भर विष के घूँट
दिनभर रस बरसाया पेड़
मरकर जी कर आया काम
परहित पाठ पढ़ाया पेड़
जल थल नभ सबको अहसास
जीभर आनंद लुटाया पेड़
[भोपाल :१०.०२.१०]
तीखे तीर चुभाती गर्मी
सरिता ताल सुखाती गर्मी
छप्पर छानी छाया में भी
अकड़े रौव जमाती गर्मी
पंखा कूलर जब जब रूठें
तीखा राग सुनाती गर्मी
गला सूख मरुथल बन जाते
रह रह प्यास जगाती गर्मी
करती तर बतर पसीने से
पल पल ध्यान बताती
लूह लपट से हाथ मिलाकर
तेवर तने दिखती गर्मी
सुवह दुपहरी भले राट हो
आँखें लाल दिखती गर्मी
[भरूच:१४.१०.०८]
हाथ मिलाते सबसे पेड़
वर्षा आंधी तूफानों का
करें सामना डटकर पेड़
छानी छप्पर महल अटारी
गा उठते बन ठन कर पेड़
मन्त्र रिचाओं की सेवा में
रहे जागते वन के पेड़
जीवन भर आनंद बांटते
आदि अंत हैं जग के पेड़
[भोपाल :१०.१२.०७]
जब भी नया उगाया पेड़
खुशहाली ले आया पेड़
मरुथल पतझड़ हुए निराश
हरियाली बन छाया पेड़
पिए रात भर विष के घूँट
दिनभर रस बरसाया पेड़
मरकर जी कर आया काम
परहित पाठ पढ़ाया पेड़
जल थल नभ सबको अहसास
जीभर आनंद लुटाया पेड़
[भोपाल :१०.०२.१०]
तीखे तीर चुभाती गर्मी
सरिता ताल सुखाती गर्मी
छप्पर छानी छाया में भी
अकड़े रौव जमाती गर्मी
पंखा कूलर जब जब रूठें
तीखा राग सुनाती गर्मी
गला सूख मरुथल बन जाते
रह रह प्यास जगाती गर्मी
करती तर बतर पसीने से
पल पल ध्यान बताती
लूह लपट से हाथ मिलाकर
तेवर तने दिखती गर्मी
सुवह दुपहरी भले राट हो
आँखें लाल दिखती गर्मी
[भरूच:१४.१०.०८]
Tuesday, August 31, 2010
डाक्टर आनंद के जनक छंद
सकल जगत है अनमना
चिंता का कारण बना
तापमान का उछलना
ताप ताव ऐसा तपा
बर्फ पिघल पानी हुआ
प्रकृति हो रही है खफा
घोर प्रदूषण बाद रहा
शुद्ध हवा पानी नहीं
जीवन घुलघुल मर रहा
पानी ताल गहरा हुआ
दिखा रहे हैं झुनझुना
सर सरिता निर्झर कुआं
यह कैसाअंधेर है
गधे पंजींरी खा रहे
कलियुग का यह फेर है
संसद पर हमला करे
सीना ताने रह रहा
फंसीं से वह ना डरे
रूप पुजारी का धरो
जप माला छापा तिलक
हत्याएं सौ सौ करो
हुआ चलन संतान का
तोड़ रहे अनुबंध सब
रेशम से सम्बन्ध का
[भोपाल १०.०६ .२०१०]
चिंता का कारण बना
तापमान का उछलना
ताप ताव ऐसा तपा
बर्फ पिघल पानी हुआ
प्रकृति हो रही है खफा
घोर प्रदूषण बाद रहा
शुद्ध हवा पानी नहीं
जीवन घुलघुल मर रहा
पानी ताल गहरा हुआ
दिखा रहे हैं झुनझुना
सर सरिता निर्झर कुआं
यह कैसाअंधेर है
गधे पंजींरी खा रहे
कलियुग का यह फेर है
संसद पर हमला करे
सीना ताने रह रहा
फंसीं से वह ना डरे
रूप पुजारी का धरो
जप माला छापा तिलक
हत्याएं सौ सौ करो
हुआ चलन संतान का
तोड़ रहे अनुबंध सब
रेशम से सम्बन्ध का
[भोपाल १०.०६ .२०१०]
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