Wednesday, November 3, 2010

Tuesday, November 2, 2010

दीप जलाये

साथ साथ पथ पर चलने से
विश्वासों के फूल खिलें हैं
सतत साधना के बदले में
अंतर्मन में भाव जगे हैं
साँस साँस विश्वास जगाकर
मंजिलको मुट्ठी में भर लें
प्राण प्राण में दीप जगाकर
जिजीविषा जीवन में भर लें प्रेम मिलन की रीति चलायें
सदियों से मानती आई जो
र घर में अब तक दीवाली
राम रहीमा के घर आँगन
बाँट नहीं पाई खुशहाली
आओ हम दोनों मिल कर के
दुनिया का अंधियारा पीलें
हरे भरे जो घाव सिसकते
पीड़ा पीलें उनको सीलें
प्राण प्राण में preeti jaagaaye