Thursday, September 30, 2010

डॉक्टर आनंद की कुण्डलियाँ

बहुत दिनोंके बाद मैं ,पहुंचा अपने गाँव
सिसक सिसक रोने लगी ,नीम आम की छाँव
नीम आम की छाँव ,सुनाने लगी कहानी
बदल गई हर रीति ,गाँव में रहां न पानी
सूरज अपने नाम ,लिखा लेता हर बोली
खुलते जिसके ओंठ ,उसी के सर पर गोली
अपने ही अब गाँव में ,रहा नहीं सम्मान
अपने ही करने लगे,अपनों का अपमान
अपनों का अपमान ,सभी को प्यारा पैसा
जब भी आता फोन ,बोलते ऐसा बैसा
सोच रहा आनंद ,गाँव अब जाऊँ कैसे
पहले लेता जान ,बाद में गिनता पैसे
खेत मेढ़ खालिहानका ,बदल गया आकार
चकबंदी के हो गए ,सपने सब साकार
सपने सब साकार ,शेष ना ऊसर बंजर
पगडंडी गढ़बाट ,तलैया गायब पोखर
वन बागन से कूक ,न जाने कहाँ खो गयी
मौसम की हर चाल ,विनाशक बीज बो ग़ई
आँखों में तिरता सदा ,अपना प्यारा गाँव
चुल्हा चौका चबूतरा ,जलता हुआ अलाव
जलता हुआ अलाव ,जगाये सबका तन मन
बांटे सबका ताप ,भुलाए सबकी अनबन
हँस हँस अपनी बात ,सनाते रोज़ कहानी
आल्हा ऊदल फाग ,सभी को रटा जबानी
[भोपाल:२०.१०.२००६]
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आनंद की कुण्डलियाँ

बहुत दिनों के बाद मैं ,पहुंचा अपने गाँव

Wednesday, September 22, 2010

तापमान के तीखे तेवर

जनसंख्या की बाढ़ से ,उपजें जटिल सवाल
तापमान का मचलना ,सबसे बड़ा बबाल
ग्रीन हॉउस के छेद का ,पसर रहा भूगोल
पंख न उसके यदि कटे, आयेगा भूडोल

Thursday, September 16, 2010

डॉक्टर आनंद के जनक छंद


सकल जगत है अनमना
चिंता का कारन बना
तापमान का उछलना
ताप ताव ऐसा तपा
बर्फ पिघल पानी बना
प्रकृति हो रही है खफा
घोर प्रदूषण बढ़ रहा
शुद्ध हवा पानी नहीं
जीवन घुल घुल मर रहा
पानी तल गहरा हुआ
दिखा रहे हैं झुनझुना
सर सरिता निर्झर कुआं
यह कैसा अंधेर है
गधे पजीरी खा रहे
कलियुग का यह फेर है
संसद पर हमला करे
सीना ताने रह रहा
फांसी से वो ना डरे
रूप पुजारी का धरो
जप माला छापा तिलक
हत्याएं सौ सौ करो
हुआ चलन संतान का
तोड़ रहे अनुवंध शुचि
रेशम से संवंध का

Saturday, September 4, 2010

आनंद की गज़लें

जीवन साथी सबके पेड़
हाथ मिलाते सबसे पेड़
वर्षा आंधी तूफानों का
करें सामना डटकर पेड़
छानी छप्पर महल अटारी
गा उठते बन ठन कर पेड़
मन्त्र रिचाओं की सेवा में
रहे जागते वन के पेड़
जीवन भर आनंद बांटते
आदि अंत हैं जग के पेड़
[भोपाल :१०.१२.०७]
जब भी नया उगाया पेड़
खुशहाली ले आया पेड़
मरुथल पतझड़ हुए निराश
हरियाली बन छाया पेड़
पिए रात भर विष के घूँट
दिनभर रस बरसाया पेड़
मरकर जी कर आया काम
परहित पाठ पढ़ाया पेड़
जल थल नभ सबको अहसास
जीभर आनंद लुटाया पेड़
[भोपाल :१०.०२.१०]
तीखे तीर चुभाती गर्मी
सरिता ताल सुखाती गर्मी
छप्पर छानी छाया में भी
अकड़े रौव जमाती गर्मी
पंखा कूलर जब जब रूठें
तीखा राग सुनाती गर्मी
गला सूख मरुथल बन जाते
रह रह प्यास जगाती गर्मी
करती तर बतर पसीने से
पल पल ध्यान बताती
लूह लपट से हाथ मिलाकर
तेवर तने दिखती गर्मी
सुवह दुपहरी भले राट हो
आँखें लाल दिखती गर्मी
[भरूच:१४.१०.०८]