Sunday, January 30, 2011

दोहा मुक्तक

अनचाहे अब बरसती,बर्फ बर्फ बस बर्फ
मानो चादर धो रही ,सर्फ सर्फ बस सर्फ
अब भी यदि चेते नहीं ,किया प्रक्रतिसे बैर
होगा बेड़ा जगत का ,गर्क गर्क बस गर्क

कुहरे की चादर तनी,जमीं दूब पर बर्फ
भूल गया पारा अरे ,लिखना सुंदर हर्फ़
तापमान के मान का,भंग हुआ सम्मान
ठंड बाट करती नहीं ,सुने न कोई तर्क

शीत लहर ने कस लिए ,तीखे तीर कमान
बिना मौतके ले रही ,जन जीवन कीजान
मरुथल में होने लगी ,बेमौसम बरसात
भावी पीड़ी भाग का ,बड़ा कठिन अनुमान

महल अटारी हँस रहे ,छानी छप्पर मौन
फुटपाथों पर लाश को ,कफन उडाए कौन
सर सरिता जल स्रोत सब ,बने बर्फ पर्याय
थके पाँव हर पथिक के ,थामे बैठा भौन
[भोपाल:३०.०१.२०११]

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